नरसिंहराव, कांग्रेस और बुद्धिजीवियों के आंसू – Global India Investigator

नरसिंहराव, कांग्रेस और बुद्धिजीवियों के आंसू

पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। प्रधानमंत्री नहीं रहने के बाद राव क़रीब पौने नौ बरस जीवित रहे। उनके निधन के 12 साल बाद अब कुछ बुद्धिजीवियों को यह चिंता खाए जा रही है कि देश के राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में उनके योगदान की कांग्रेस पार्टी ने क़द्र नहीं की।

1989 के आम चुनाव में अपनों की ही आरियों ने राजीव गांधी के सिंहासन के पाए काट दिए थे। 68 साल से ऊपर के हो रहे राव वह चुनाव महाराष्ट्र में रामटेक से जीते थे। बावजूद इसके कि 197 सीटों के साथ लोकसभा में कांग्रेस ही सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी, राजीव ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन एक साल भी पूरा नहीं कर पाए। चंद्रशेखर भी सात महीने में प्रधानमंत्री की कुर्सी से जाते रहे। 1991 के मई में दोबारा चुनाव हुए।

वे लोग अभी मौजूद हैं, जिन्हें राजीव गांधी की श्रीपेरुंबुदूर में अचानक अलविदाई के बाद और उसके कुछ महीने पहले की वे घटनाएं जस-की-तस याद हैं, जिन्होंने राव को पहले कांग्रेस अध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। राव रायसीना हिल्स पर अपनी संतई से नहीं, शतरंजी चालों से पहुंचे थे। अप्रैल-91 की दो तारीख़ को नरसिंह राव ने दस-जनपथ जा कर राजीव गांधी से कहा कि लोकसभा का चुनाव लड़ाने के बजाय उन्हें राज्यसभा में लाया जाए।

अप्रैल के आखिरी सप्ताह में उम्मीदवारों ने चुनाव के लिए अपने नामांकन पत्र दाखि़ल किए। मई की शुरुआत में राव ने अपना सामान बांधा और 45 बक्से हैदराबाद रवाना कर दिया। उन्होंने मुंबई में भी एक फ्लैट ले लिया ताकि महाराष्ट्र से राज्यसभा का नामांकन दाखिल करते समय स्थानीय पता मौजूद रहे। सामान के 15 बक्से वहां भी भेज दिए गए। वे यह मन भी बनाने लगे थे कि अगर राज्यसभा में न आ सके तो संन्यास ले लें और तमिलनाडु के थिरुनेलवेलि जिले में कुर्ताल्लम के रामकृष्ण मठ के मुखिया बन जाएं। चुनावों से संबंधित कामकाज के सिलसिले में वे अप्रैल-मई में दिल्ली आते रहे। 11 मई को रेडियो पर कांग्रेस का चुनाव-संदेश उन्होंने ही पढ़ा था। 16 मई की शाम की उड़ान से राव दिल्ली से हैदराबाद चले गए। पहले चरण में 20 मई को लोकसभा की 211 सीटों पर मतदान होना था। 21 मई की रात राजीव गांधी की हत्या हो गई। उस रात राव नागपुर में कांग्रेसी नेता एन.के.पी. साल्वे के घर पर थे।

राजीव के निधन की ख़बर रात ग्यारह बजते-बजते दिल्ली पहुंच गई थी और मुझ जैसे कई संवाददाता आधी रात होने तक दस-जनपथ के बाहर इकट्ठा थे। सारी रात भीतर जाने-आने वालों का तांता लगा रहा। राजीव गांधी का पार्थिव शरीर लेकर वायुसेना का विमान सुबह क़रीब सवा चार बजे दिल्ली विमानतल पर उतरा। नरसिंहराव साढ़े ग्यारह बजे के आसपास दस-जनपथ पहुंचे। सभी की तरह उनके चेहरा भी बेतरह उदास था। सूरज उगने से पहले ही वे दिल्ली की उड़ान पकड़ने के लिए नागपुर विमानतल पहुंच गए थे और वहां से उन्होंने राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन के संयुक्त सचिव गोपालकृष्ण गांधी को फोन किया। राव ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात का अनुरोध नागपुर से उड़ने के पहले ही लिखवा दिया था।

लोकसभा चुनाव के दो चरण बाक़ी थे और राजीव के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए भीतर-ही-भीतर बिसात भी उसी सुबह बिछने लगी थी। सब जानते थे कि जो पार्टी का अध्यक्ष बन जाएगा, मौक़ा आने पर प्रधानमंत्री की गद्दी भी उसे ही हासिल होगी। कानाफूसी चल रही थी कि दस-जनपथ के भीतर प्रणव मुखर्जी ने राव को एक तरफ़ ले जा कर उनके कान में कहा है कि अध्यक्ष के लिए उनके नाम पर सब सहमत हैं और बेहतर होगा कि आज ही इसका ऐलान करा लिया जाए।

लेकिन राव इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं थे। वे अपनी राह के रोड़ों को अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने नारायण दत्त तिवारी को यह ज़िम्मेदारी सौंपने का सुझाव दिया। राजीव गांधी के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए तीन मूर्ति भवन ले जाया गया और तब तक बाहर नारे गूंजने लगे कि सोनिया को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए। इसी गहमागहमी के बीच दोपहर बाद अर्जुन सिंह और माखनलाल फोतेदार जा कर राव से मिले। अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सोनिया गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की बात छेड़ते ही राव का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस कोई रेलगाड़ी है, जिसके बाकी डिब्बे नेहरू-गांधी परिवार के किसी इंजन से ही जुड़े रहें?

शाम को कांग्रेस कार्यसमिति की आपात बैठक हुई। सोनिया को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा गया। राव और शरद पवार के अनमने संकेतों के बावजूद प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। लेकिन कार्यसमिति की राय राजीव के पार्थिव शरीर के सिरहाने बैठी सोनिया के पास तीनमूर्ति भवन पहुंची तो उन्होंने इसे एक झटके में नकार दिया। अगले दिन, 23 मई को, राव ने पी.सी. एलेक्जेंडर को संदेश भेजा कि वे उनसे मिलें। एलेक्जेंडर इंदिरा गांधी के भी प्रधान सचिव रहे थे और राजीव के भी। रात को एलेक्जेंडर राव से मिले। राव ने दिखाने को तो यह दिखाया कि कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की उनमें कोई ललक नहीं है, लेकिन यह भी कहा कि सोनिया के इनकार करने के बाद बहुत-से कांग्रेसी नेता आकर उन पर यह ज़िम्मेदारी संभालने का दबाव डाल रहे हैं। इशारा साफ था।

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24 को राजीव का अंतिम संस्कार हुआ। इसके अगले दिन सोनिया गांधी से पार्टी के नए अध्यक्ष का नाम सुझाने को कहा गया। उन्होंने कई लोगों से बातचीत की। शंकरदयाल शर्मा उपराष्ट्रपति थे। सोनिया ने उन्हें पार्टी और चुनाव के बाद सरकार की कमान संभालने का संदेश भेजा। शर्मा ने स्वास्थ्य-कारणों से अलग रहना बेहतर समझा। इसके बाद नेहरू-गांधी परिवार के विश्वस्त पी.एन. हक्सर ने राव का नाम सुझाया और वे कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। आम चुनाव के बाद उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ले जाने में चंद्रास्वामी और कप्तान सतीश शर्मा की भूमिका का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है। लेकिन वह फिर कभी।

राव के प्रधानमंत्रित्व के 1790 दिनों में उनका सबसे बड़ा सामाजिक योगदान तो 6 दिसंबर 1992 की घटना ही थी, जिसका कलंक कांग्रेस के माथे से सोनिया और राहुल गांधी लाख मेहनत के बावजूद आज तक नहीं पोंछ पा रहे हैं। उत्तर भारत में कांग्रेस के सफाए के बीज भी राव-काल में ही बोए गए और इससे बड़ा राजनीतिक योगदान उन्होंने क्या किया? रह गई अर्थव्यवस्था में योगदान की बात तो आर्थिक उदारीकरण की संयमित शुरुआत तो राजीव गांधी ने अपने समय में ही कर दी थी। हां, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के इशारे पर बेसब्र-नृत्य करने वाली सरकारों का दौर ज़रूर राव के जमाने से शुरू हुआ।

तमाम अमेरिकी दबावों के बावजूद राजीव गांधी ने 1989 में भारत को परमाणु मिसाइलों से लैस करने की मंजूरी दी थी। अगर वे 1995 में होते तो 19 दिसंबर को होने वाले परमाणु मिसाइल टेस्ट को क्या बिल क्लिंटन के कहने पर रोक देते? यह तो अटल बिहारी वाजपेयी की भलमनसाहत थी कि जब उन्होंने अपनी सरकार के ज़माने में भारत के परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र होने की घोषणा की तो कहा कि यह काम पिछली कांग्रेस सरकार के वक़्त ही पूरा हो गया था, हमने तो इसका सिर्फ़ औपचारिक आगाज़ किया है।

‘नेहरू-गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस’ की स्थापना का अभियान चला रहे बुद्धिजीवी कांग्रेस पर राव की क़द्र न करने का आरोप लगाते समय ज़रा मुड़-मुड़ कर तो देखें! जो सम्मान राव को कांग्रेस में मिला, क्या कहीं और मिलता?

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