मुझे इसमें ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है कि अब से तीन दिन बाद कांग्रेस के कपिल सिब्बल उत्तर प्रदेश से राज्यसभा का चुनाव जीतते हैं या हारते हैं। लेकिन मुझे इसमें ज़रूर दिलचस्पी है कि भारतीय जनता पार्टी के 16 विधायकों के अलावा समाजवादी पार्टी के रामपाल यादव, बहुजन समाज पार्टी के बाला प्रसाद अवस्थी, अपना दल के आर. के. वर्मा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के फतेह बहादुर जैसे दिग्गजों के समर्थन से मैदान में उतरीं प्रीति महापात्र का क्या होता है? इसलिए कि बड़ौदा के दीपकराज देसाई की बेटी और उड़ीसा के हरिहर महापात्र की पत्नी प्रीति देश में हो रहे राज्यसभा के इन चुनावों में भाजपा के पवित्र राजनीतिक संस्कारों की प्रतीक बन गई हैं।
मुझे नहीं मालूम कि गुजरात में हिंदूजा कॉलेज की कॉमर्स ग्रेजुएट प्रीति को शादी के बाद अपने कारोबारी पति के साथ मुंबई में बस जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में पहुंचने की इतनी ललक क्यों है? मुझे इससे भी कोई लेना-देना नहीं है कि उनके राज्यसभा में पहुंचने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान कितनी बढ़ती है? लेकिन मुझे इससे ज़रूर लेना-देना है कि सियासी-ठुमकों के इस दौर में प्रीति की क़ामयाबी से लोकतंत्र की शान में कोई गुस्ताखी़ तो नहीं होगी?
37 बरस की प्रीति के पास अगर 23 करोड़ रुपए की संपत्ति है तो वह उनकी गाढ़ी कमाई है। प्रीति के पति हरिहर अगर गुजरात, महाराष्ट्र और उड़ीसा में कारोबार करते हैं तो उन्हें भी इसका हक़ है। प्रीति अगर कृष्णलीला फाउंडेशन और नरेंद्र मोदी विचार मंच चलाती हैं तो इसमें भी क्या हर्ज़ है? मेरे हिसाब से ये कोई मुद्दे ही नहीं हैं। हां, अगर कोई यह मुद्दा उठाना चाहता है कि दो बरस पहले कृष्णलीला फाउंडेशन ने गुजरात के नवासारी में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के स्वच्छ भारत अभियान में मदद देने के लिए जिन दस हज़ार शौचालयों के निर्माण का ऐलान किया था, उनका क्या हुआ तो ज़रूर उठाए। दो सौ रुपए में एक शौचालय बनाने की तकनीक अगर होती तो फाउंडेशन के बीस लाख रुपयों से इतने शौचालय बन भी सकते थे। तकनीक नहीं है तो प्रीति क्या करें?
मुझे नहीं मालूम कि नवासारी के भाजपा सांसद च्रदंकात पाटिल नरेंद्र भाई के कितने नज़दीकी हैं और भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह उन्हें कितना पूछते हैं? मुझे यह भी नहीं मालूम कि प्रीति-हरिहर युगल पाटिल के दरअसल कितने ख़ास हैं? लेकिन मुझे इतना ज़रूर याद है कि पिछले साल हरिहर ने सूरत में देश की सबसे ऊंची इमारत बनाने का ऐलान किया था और तब से पूरा देश उनकी तरफ़ हसरत भरी निग़ाहों से देख रहा है। मैं भी सोचता हूं कि देश के तो जब आएं, तब आएं, मगर कम-से-कम सूरत के अच्छे दिन तो आ जाते। नरेंद्र भाई को तो देस-परदेस की गुत्थियां सुलझाने से मुक्ति मिले तो कुछ कर के दिखाएं, हरिहर भाई को अपनी दस-बीस कंपनियां चलाने के अलावा ऐसा कौन-सा काम है कि इमारत का काम शुरू नहीं हो रहा है?
और पहले किया हो तो मैं नहीं जानता, लेकिन प्रीति और हरिहर महापात्र ने अपनी कंपनियां बनाने का श्रीगणेश पांच साल पहले 2011 में किया था। उस साल जून में उन्होंने चार कंपनियां बनाईं–एच. एम. हॉस्पिटेबिलिटी सर्विसेज़, एच. एम. टेलीमीडिया, एच. एम. स्काईस्क्रेपर्स और एच. एम. ज्वेल्स ऐंड ज्वेलरीज़। पांच महीने बाद नवंबर में उन्होंने दो कंपनियां और बनाईं–एच. एम. बिज़िनेस सॉल्यूशन्स और पी. एम. एच. एविएशन सर्विसेज़। लेकिन इस तरह की बेतुकी बातों का भी कोई मतलब नहीं है। क्या राजनीति में आने वालों को व्यापार करने का अधिकार नहीं है? इसलिए मुझे इससे भी कोई मतलब नहीं है कि महापात्र-युगल ने कंपनियां बनाने की यह श्रंखला आगे ज़ारी रखी या नहीं?
कोई राजनीति में आ भर जाए, फिर लोग क्या-क्या बातें करते हैं, क्या कहें? अब प्रीति को अगर राज्यसभा का भूत न लग गया होता तो क्या आपको कोई यह बताता कि औरंगाबाद के एक डॉक्टर-युगल हरिहर-प्रीति के ख़िलाफ़ पिछले साल पुलिस में रपट दर्ज़ कराने चला गया था? पेर्सी और मंजू जिल्ला स्त्री-रोग विशेषज्ञ हैं। उनका कहना था कि हम 2011 में हरिहर-प्रीति से मिले थे। ध्यान दें कि यह वही साल था, जब प्रीति और उनके पति तरह-तरह की कंपनियों को जन्म दे रहे थे। जिल्ला दंपत्ति का कहना है कि हरिहर-प्रीति अपनी संतान के जन्म में आ रही दिक़्कतों को दूर करने के लिए उनसे इलाज़ कराना चाहते थे। इस सिलसिले में डॉक्टर-युगल मुंबई जाने-आने लगा। हरिहर-प्रीति उन्हें पहले तो पांच सितारा होटलों में ठहराते थे, लेकिन जब जान-पहचान अनौपचारिकता में बदल गई तो डॉक्टर-युगल हरिहर के घर ही ठहरने लगा।
पेर्सी-मंजू ने पुलिस को बताया कि इन्हीं दिनों एक बार जब वे क़रीब एक हफ़्ते हरिहर-प्रीति के साथ रुके तो बांद्रा में एक दस मंज़िला निर्माणाधीन इमारत में उन्हें भागीदारी देने की पेशकश हुई। पेर्सी ने पुलिस को बताया कि हरिहर हमेशा अपने ऊंचे राजनीतिक, प्रशासनिक और व्यवसायिक संबंधों-संपर्कों की डींग हांका करते थे। 8-10 करोड़ रुपए के बदले इमारत के मुनाफ़े में 30 प्रतिशत भागीदारी और दसवीं मंज़िल पर 5,469 फुट का एक फ़्लैट देने का प्रस्ताव रखा गया था। हरिहर ने प्रेसी को निर्माण का मंजूरी का नक़ली प्रमाणपत्र भी दिखा दिया। एक बार प्रेसी को ले जा कर एक ख़ाली भूखंड भी दिखाया गया, जिस पर कथित इमारत बननी थी।
प्रेसी ने क़िस्तों में पैसे देने शुरू कर दिए थे। 2013 आते-आते वह हरिहर को साढ़े पांच करोड़ रुपए दे दिए गए। इस बीच प्रेसी ने आर.टी.आई. के ज़रिए निर्माण-मंजूरी की सत्य-प्रतिलिपि मांगी तो उसे पता चला कि वह तो 2004 में जोगेश्वरी इलाक़े में बनी किसी इमारत के लिए ज़ारी की गई थी। इसके बाद डॉक्टर-युगल ने प्रीति-हरिहर के खि़लाफ़ पुलिस में रपट कर दी। रपट पर क्या हुआ, क्या नहीं–कौन जाने?
राज्यसभा के 238 निर्वाचित सदस्यों में से भाजपा के पास इस वक़्त चूंकि 49 ही हैं, इसलिए उसे देश-सेवा करने में बहुत-सी दिक्क़तें आ रही हैं। ऐसे में साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल कर के ज़्यादा-से-ज़्यादा सीटें जीतने की भाजपा की इच्छा को हवस समझना ठीक नहीं है। क़ानूनी और संवैधानिक पेचीदगियों के महारथी कांग्रेसियों को राज्यसभा में घुसने से रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाने पर भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। आर. एस. एस. भले हो, भाजपा कोई संास्कृतिक संगठन तो है नहीं। वह तो एक राजनीतिक दल है। सो भी, द्वापर के नहीं, कलियुग के हस्तिनापुर का। इस शनिवार राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों का संख्या बढ़ कर 54 तो हो ही जाएगी। लेकिन कांग्रेस के 64 सदस्यों के मुक़ाबले दस सीढ़ियों की अदनी-सी दूरी पाटने के लिए भारत के संसदीय लोकतंत्र को गहरी खाई में ठेलने के लिए भाजपा अगर अपने सारे उसूल ठेंगे पर रख दे तो उसकी मर्ज़ी।
जिस जनतंत्र के पहरुए उत्तर प्रदेश के आंगन में प्रीति महापात्र, हरियाणा में ज़ी टीवी के मालिक़ सुभाष चंद्रा और खुर्रांट क़ानूनची आर. के. आनंद और राजस्थान के आंगन में अरबपति उद्योगपति कमल मोरारका की रिझाऊ पदचापों को मत-हरण के लिए बढ़ावा देते हों, उनके हमाम में गंगाजल के उपयोग की आस रखने वालों को मैं दाद देना चाहता हूं।
लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।
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